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नवरात्रि 2025 के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व और विधि

नवरात्रि 2025 के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व और विधि

मां ब्रह्मचारिणी का महत्व

नवरात्रि के दूसरे दिन, अर्थात् नवरात्रि 2025 में माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा का विशेष स्थान है। वह देवी पार्वती का अविबाहित स्वरूप है, जो शुद्ध साधना, निष्ठा और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक मानी जाती है। ब्रह्म शब्द का अर्थ है ‘पवित्र तपस्या’ और चारीणी का मतलब है ‘जो अनुसरण करती है’। इन दोनों को मिलाकर यह स्वरूप निरन्तर आत्म-नियंत्रण और विष्णु-शिव प्रेम की ओर इशारा करता है।

हिमालय में जन्मी माँ ब्रह्मचारिणी ने नारद मुनि के प्रेरणा से शताब्दी तक कठिन तपस्या की, जिससे अंततः उन्हें शिव जी के साथ विवाह मिला। उनके इस पराक्रम को देखते हुए शनि (मंगल) ग्रह की भी वह संरक्षक बन गईं। इस कारण वह प्रेम, निष्ठा, ज्ञान और साहस का भी प्रतिनिधित्व करती हैं।

पूजा विधि व शुभ मुहूर्त

भक्तों को सलाह दी जाती है कि सुबह की स्नान के बाद ही माताजी की पूजा आरम्भ करें। खासकर सुबह 07:30 बजे से दोपहर 12 बजे के बीच का समय अक्सर शुभ माना जाता है, पर स्थानीय पंचांग के अनुसार सही मुहूर्त जाँचना बेहतर रहेगा। पूजा से पहले कैलाश स्थापित करना अनिवार्य है—कंटेनर को तीन परतों की मिट्टी, सात धान्य के बीज और जल से भर कर मध्य में पवित्र जल, सुपारी, सिक्के, अक्षत और दुर्वा घास रखी जाती है। इसके ऊपर लाल कुमकुम से स्वस्तिक बनाया जाता है और पाँच आम के पत्ते तथा लाल कपड़े में लिपटा नारियल सजाया जाता है।

पूजा का क्रम नीचे दिया गया है, जिसे क्रमवार पालन करने से ऊर्जा साकार होती है:

  1. वेदिक शुद्धि: पूजा स्थल को पूरी तरह साफ़ करें और माँ ब्रह्मचारिणी की मूर्ति या फोटो रखें।
  2. पंचामृत स्नान: शहद, चीनी, दूध, दही और घी का मिश्रण बनाकर मूर्ति पर डालें।
  3. कुंकुम तिलक: देवियों के माथे पर लाल कुंकुम से तिलक लगाएँ।
  4. सफेद पुष्प अर्पण: सफेद कमल या अन्य सफेद फूल, साथ में चावल, रोली और कुंकुम छिड़कें।
  5. दीप-अरोड़ा: घी का दीपक जलाएँ, धूप और अगरबत्ती क्रीड़ित करें।
  6. पान और सुपारी: पान के टुकड़े और सुपारी को देवी को अर्पित करें।
  7. पंचामृत भोग: ऊपर बनाये गये पंचामृत को भोग के रूप में पेश करें।
  8. मनत्र जप: ‘ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः’ मंत्र को 108 बार जपें, हाथ में फूल रखकर।
  9. आरती: कपूर के साथ आरती चढ़ाएँ, फिर परिवार में वितरित करें।
  10. भजन संध्या: भक्ति गीत और श्लोक गाकर माहौल को पावन बनाइए।

पूजा में सफेद रंग का विशेष महत्व है। सफेद शुद्धता, शांति और आध्यात्मिक जागृति का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए सफेद वस्त्र, सफेद फूल और सफेद मिठाई अर्पित की जाती हैं।

मुख्य मंत्र ‘ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः’ का निरन्तर जप करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है और आत्म-सिद्धि के मार्ग पर प्रकाश मिलता है। इस मंत्र को गहराई से सुनना व उच्च स्वर में दोहराना अधिक प्रभावी माना जाता है।

भक्तों को माँ की कृपा पाने के लिए धैर्य, शुद्ध इरादा और नियमित साधना आवश्यक है। जब माँ प्रसन्न होती हैं, तो वह निम्नलिखित वरदान देती हैं:

  • आन्तरिक शांति और मानसिक शक्ति में वृद्धि।
  • ध्यान, योग और आध्यात्मिक प्रगति में प्रयत्नशीलता।
  • जीवन के मार्ग में आने वाली बाधाओं का निवारण।
  • विचारों की स्पष्टता और ज्ञान के प्रसार में सहायता।
  • मुक्ति (मोक्ष) की दिशा में प्रेरित करना, विशेषकर विद्यार्थियों और साधकों के लिए।

विशेष भोग की बात करें तो सफेद कमल, अनारस और शुद्ध मिठाइयों को प्राथमिकता दी जाती है। साथ ही फल, नारियल और काजू भी प्रस्तुत किए जा सकते हैं। नवरात्रि के पूरे नौ दिनों में अखण्ड ज्योति (अर्क) जलाना अनिवार्य है; यह प्रगति, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इस ज्योति को सात दिनों तक निरन्तर जलाते रहना श्रद्धा की उच्चतम अभिव्यक्ति है।

पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद को सभी परिवारजनों और उपस्थित भक्तों में बाँटें। यह सामाजिक समानता और आपसी प्रेम को बढ़ावा देता है। इस प्रकार, नवरात्रि 2025 के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा न केवल धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि आत्म-विकास और जीवन की सकारात्मक दिशा को समझने का माध्यम भी बनती है।

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