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समीर वंखेडे ने शाहरुख़ खान की रेड चिलीज़ और नेटफ्लिक्स पर 2 करोड़ रुपये का मानहानि मुकदमा

समीर वंखेडे ने शाहरुख़ खान की रेड चिलीज़ और नेटफ्लिक्स पर 2 करोड़ रुपये का मानहानि मुकदमा

समीर वंखेडे, former NCB zonal director और IRS officer ने दिल्ली हाई कोर्ट में मानहानि मुकदमा दायर किया है। उन्होंने 25 सितंबर 2025 को रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट प्रा. लि., जिसके मालिक शाहरुख़ खान और गौरी खान हैं, और स्ट्रीमिंग दिग्गज नेटफ्लिक्स के खिलाफ 2 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति की माँग की। यह मामला ‘The Bads of Bollywood’ नामक वेब‑सीरीज़ से जुड़ा है, जिसका निर्देशन शाहुर्ण ‘आर्यन खान’ ने किया है। वंखेडे का कहना है कि सीरीज़ में उनका ‘रंगीन’ चित्रण न केवल उनके व्यक्तित्व को घटाता है, बल्कि नशीले पदार्थों के खिलाफ law‑enforcement एजेंसियों की छवि को भी धूमिल करता है।

पृष्ठभूमि: 2021 मुम्बई क्रूज़ ड्रग रैड

2021 में मुम्बई के एक लक्ज़री क्रूज़ पर हुई ड्रग रैड ने भारतीय टीवी पर हलचल मचा दी थी। वहीँ समीर वंखेडे ने शाहरुख़ खान के बेटे आर्यन खान को हिरासत में लिया था। बाद में, 2022 में आर्यन को सभी आरोपों से बरी घोषित किया गया, लेकिन मामला कानूनी जटिलताओं में फँसा रहा। इस घटना की धूम बाद में ‘The Bads of Bollywood’ में एक चरित्र के रूप में आई, जो वंखेडे को ‘बॉलीवुड पार्टी’ के बाहर नशे के मामले की तलाश में दिखाता है। यह दृश्य कई दर्शकों को अभेद्य लगने के साथ‑साथ मीडिया में बहस का कारण बना।

केसल का मुख्य बिंदु: मानहानि दावा और माँगी हुई क्षतिपूर्ति

वंखेडे ने अपनी याचिका में बताया कि सीरीज़ में उनका चित्रण ‘भ्रमित और नकारात्मक’ है, जिससे जनता का ‘क़ानून‑कार्यकर्ताओं’ प्रति भरोसा घटता है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ‘The Bads of Bollywood’ का निर्माण ‘जानबूझकर’ उनके नाम को कलंकित करने के इरादे से किया गया था। याचिका में विशेष रूप से एक दृश्य का उल्लेख किया गया है, जहाँ एक पात्र राष्ट्रीय प्रतीक ‘सत्य मे व जयते’ के बाद मध्य उंगली दिखाता है – जिसे वह ‘Prevention of Insults to National Honour Act, 1971’ के उल्लंघन के रूप में देखता है।

दया की बात है कि वंखेडे ने सभी संभावित क्षतिपूर्ति को टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल को दान करने का इरादा जताया है, ताकि उपचार लाभार्थियों को मदद मिल सके। यह कदम न सिर्फ व्यक्तिगत सम्मान की रक्षा का संदेश देता है, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी का भी प्रतीक है।

पार्टी की प्रतिक्रिया: रक्षा पक्ष और प्रतिवाद

दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मुकदमे में सभी प्रतिवादी को सात दिन के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया। रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट और नेटफ्लिक्स ने अपनी-अपनी कानूनी टीम के जरिए उत्तर दिया। नेटफ्लिक्स के वरिष्ठ वकील राजीव नायर ने कहा कि सभी प्रतिवादी एक ही अधिकार क्षेत्र में नहीं हैं, इसलिए कोर्ट को उनके खिलाफ तुरंत निषेधाज्ञा (इन्कमेट) जारी नहीं करना चाहिए। उन्होंने यह भी इंगित किया कि सीरीज़ एक ‘सैटायर’ के रूप में बनी है, न कि व्यक्तिगत बदनामी का साधन।

रेड चिलीज़ की ओर से उनके सिद्धांतों को बचाते हुए एक प्रेस रिलीज़ जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि कंपनी ने ‘स्वतंत्र कला और अभिव्यक्ति के अधिकारों’ का सम्मान किया है। कंपनी ने यह भी बताया कि उन्होंने उन दृश्यों को हटाने के लिए नेटफ्लिक्स के साथ संलग्न वार्ता शुरू कर दी है, यदि अदालत इस दिशा में आदेश देती है।

भविष्य की सुनवाई और संभावित प्रभाव

केस की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर 2025 को निर्धारित है। यदि अदालत वंखेडे को नुकसान की भरपाई के साथ साथ स्थायी निषेधाज्ञा जारी करने का आदेश देती है, तो यह भारतीय मीडिया में ‘प्लॉट-ड्रिवेन’ कंटेंट पर एक नया कानूनी मानक स्थापित कर सकता है। यह निर्णय न केवल मनोरंजन उद्योग को बल्कि नशा‑मुक्ति अभियानों को भी प्रभावित करेगा, क्योंकि कई शो अब सच्ची पुलिस कार्रवाई को नाटकीय रूप से प्रस्तुत करने से बच सकते हैं।

दूसरी ओर, यदि कोर्ट इस याचिका को खारिज कर देता है, तो यह सर्जनात्मक अभिव्यक्ति की सीमा को स्पष्ट करेगा और बिगड़ते हुए डिजिटल कंटेंट निर्माताओं को राहत दे सकता है। दोनों स्थितियों में, यह मुकदमा ‘संकट के समय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम व्यक्तिगत प्रतिष्ठा’ के बीच संतुलन बनाने की जटिलता को उजागर करेगा।

विशेष टिप्पणी: विशेषज्ञों की राय

विशेष टिप्पणी: विशेषज्ञों की राय

कानूनी विश्लेषक डॉ. रिधि मिश्रा, जो नई भारतीय न्यायशास्त्र की प्रोफेसर हैं, ने कहा, “मानहानि के मामलों में प्रतिपक्षी को स्पष्ट प्रमाण दिखाना पड़ता है कि तस्वीरित घटना वास्तविकता का अभिलेख नहीं बल्कि रचनात्मक कल्पना है। यदि मुक्त अभिव्यक्ति के नाम पर पुनरावृत्तिक दुष्प्रचार सिद्ध नहीं हो पाता, तो अदालत को वंखेडे के पक्ष में निर्णय देना संभव है।”

उसी समय, मनोरंजन उद्योग के यूँटकॉर को‑ऑर्डिनेटर सुरेश कपूर ने बताया, “सैटायर शैलियों में कभी‑कभी वास्तविक व्यक्तियों का उल्लेख होना सामान्य है, परन्तु इस तरह की बात को सावधानी से करना चाहिए, नहीं तो कानूनी उलझन में फँस सकते हैं। हम सभी निर्माताओं से अपील करते हैं कि वे वास्तविक व्यक्तियों की प्रतिष्ठा को देखते हुए कहानी लिखें।”

मुख्य तथ्य

  • प्रारम्भिक याचिका दायर: 25 सितंबर 2025 (कुछ स्रोत 8 अक्टूबर 2025), दिल्ली हाई कोर्ट में।
  • माँगी गई क्षतिपूर्ति: ₹2 करोड़, सभी राशि टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल को दान।
  • विरोधी: रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट, नेटफ्लिक्स, और अन्य अतिरिक्त उत्तरदाता।
  • मुख्य विवाद: ‘The Bads of Bollywood’ में वंखेडे के समान किरदार की प्रस्तुति और राष्ट्रीय सम्मान को ठेस पहुँचाने वाला दृश्य।
  • अगली सुनवाई: 30 अक्टूबर 2025, दिल्ली हाई कोर्ट।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या इस केस का असर नेटफ्लिक्स की अन्य भारतीय सीरीज़ पर पड़ेगा?

यदि अदालत वंखेडे को नुकसान की भरपाई और स्थायी निषेधाज्ञा देती है, तो नेटफ्लिक्स को भारतीय कानून के तहत वास्तविक व्यक्तियों के चरित्र चित्रण में अधिक सावधानी बरतनी पड़ेगी। इससे भविष्य की सैटायर और बायोग्राफी‑आधारित श्रृंखलाओं में कापी‑राइट और मानहानि जोखिमों का पुनर्मूल्यांकन हो सकता है।

समीर वंखेडे ने इस मुकदमे की रकम क्यों दान करने का चयन किया?

वंखेडे ने कहा है कि वह व्यक्तिगत प्रतिष्ठा की रक्षा चाहते हैं, पर साथ ही समाज को योगदान देना चाहते हैं। इसलिए, उन्होंने सभी संभावित क्षतिपूर्ति को टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल को दान करने की घोषणा की, जिससे कैंसर रोगियों को इलाज में मदद मिल सके। यह कदम उनके सामाजिक जिम्मेदारी के दृष्टिकोण को दर्शाता है।

क्या इस केस में शाहरुख़ खान व्यक्तिगत तौर पर शामिल हैं?

शाहरुख़ खान व्यक्तिगत तौर पर याचिका में प्रतिवादी नहीं हैं, पर उनके स्वामित्व वाली कंपनी रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट को आरोपी बनाया गया है। कंपनी ने कहा है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करती है और इस मामले में अपना पक्ष स्पष्ट करने के लिए कानूनी प्रक्रिया का इंतज़ार कर रही है।

केस की सुनवाई में कौन-कौन से कानूनी मुद्दे मुख्य रूप से उठेंगे?

मुख्य मुद्दे हैं: (1) क्या ‘The Bads of Bollywood’ में वंखेडे का चित्रण वास्तविक तथ्यों पर आधारित है या कलंकित करने वाला है; (2) क्या उस दृश्य में राष्ट्रीय प्रतीक के अपमान का उल्लंघन हुआ है; (3) दावे की वैधता के लिये कब तक क्षतिपूर्ति और निषेधाज्ञा का आदेश आवश्यक है। यह सब अदालत के विशिष्ट प्रमाण-निर्भर निर्णय पर निर्भर करेगा।

यह मुकदमा भविष्य में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मीडिया के रुख को कैसे बदल सकता है?

यदि वंखेडे को जीत मिलती है, तो अन्य अधिकारी यह सोचेंगे कि उनके व्यक्तिगत जीवन या पेशेवर कार्यों को नाटकीय रूप से दिखाने वाली कंटेंट पर कानूनी कार्यवाही का जोखिम बढ़ सकता है। इससे संभवतः अधिक प्रतिबंधात्मक समीक्षाएँ और मीडिया में अधिक संतुलित दर्शकों की अपेक्षा उत्पन्न होगी।

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टिप्पणि (1)

Hitesh Kardam

Hitesh Kardam

अक्तूबर 12 2025

ये केस तो बस बड़ी ताकतों की छुपी साजिश है।

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