स्पेनिश प्रधानमंत्री का प्रमुख बयान
स्पेनिश प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ ने मंगलवार को अपने कैबिनेट की एक महत्वपूर्ण बैठक में मध्य पूर्व में शांति स्थापित करने के विषय पर जोरदार बयान दिया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना ही इस क्षेत्र में शांति के लिए महत्वपूर्ण है। सांचेज़ ने इस मुद्दे पर अपने देश की नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि एक व्यवहार्य फिलिस्तीनी राज्य को इजरायल के साथ सह-अस्तित्व में रहना होगा, जिसमें पश्चिमी तट और गाजा पट्टी को एक कोरिडोर के माध्यम से जुड़ा होना चाहिए और पूर्वी यरुशलम को उसकी राजधानी बनाना चाहिए।
1967 के पूर्व सीमाएँ बनी रहेंगी
पेड्रो सांचेज़ ने यह भी स्पष्ट किया कि स्पेन 1967 के पूर्व की सीमाओं में किसी भी परिवर्तन को तब तक मान्यता नहीं देगा जब तक कि दोनों पक्ष इसके लिए सहमत नहीं हो जाते। यह बयान उन्होंने इस क्षेत्र में शांति प्रक्रिया को गति देने और समाधान खोजने के प्रयासों के मद्देनजर दिया।
स्पेन की कैबिनेट की मान्यता
कैबिनेट बैठक के दौरान, स्पेन ने औपचारिक रूप से फिलिस्तीनी राज्य की मान्यता देने का निर्णय ली। सांचेज़ ने कहा कि यह निर्णय यूरोपीय संघ और वैश्विक समुदाय को संदेश देता है कि स्पेन शांति स्थापना के पक्ष में है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहकारितापूर्ण प्रयासों के माध्यम से ही इस मुद्दे का समाधान हो सकता है।
इजरायल की प्रतिक्रया
इस कदम ने इजरायल में नाराजगी पैदा कर दी है। इजरायली विदेश मंत्री इसरायल कात्ज़ ने सांचेज़ को 'यहूदी नरसंहार को बढ़ावा देने वाला' बताकर कड़ी आलोचना की। उन्होंने यह भी कहा कि स्पेन का यह कदम इजरायल और फिलिस्तीन के बीच शांति वार्ता के प्रयासों को नुकसान पहुँचा सकता है।
अन्य देशों की मान्यता
स्पेन की इस मान्यता के बाद, आयरलैंड और नॉर्वे जैसे अन्य यूरोपीय देशों द्वारा भी फिलिस्तीनी राज्य की मान्यता देने की संभावना है। अब तक 144 देशों ने फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता दी है और कई यूरोपीय देशों ने भी इसका समर्थन किया है।
तथापि, इस निर्णय के परिणामस्वरूप, इजरायल ने स्पेन, आयरलैंड और नॉर्वे से अपने राजदूतों को वापस बुला लिया है। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि फिलिस्तीन-इजरायल मुद्दा कितना संवेदनशील और जटिल है।
विश्व राजनीति पर असर
यह निर्णय ना केवल मध्य पूर्व में, बल्कि वैश्विक राजनीति में भी महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अन्य राष्ट्र और विशेष रूप से यूरोपीय संघ इस पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं।
उम्मीद की जा रही है कि यह निर्णय अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच व्यापक चर्चा और विमर्श को जन्म देगा, जिससे लंबे समय से चले आ रहे इस विवाद को सुलझाने में नई राहें खुल सकती हैं।
स्पेन का यह कदम दर्शाता है कि शांति की दिशा में किसी भी पहल का स्वागत किया जाना चाहिए, बशर्ते वह दोनों पक्षों के हित में हो।