पुतिन की तरफ से 3 दिन की सीजफायर और असलियत का हाल
रूस के राष्ट्रपति पुतिन के यूक्रेन में 8 से 10 मई तक एकतरफा तीन दिन की एकतरफा सीजफायर की घोषणा ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। दरअसल, यह फैसला रूस के 'विक्ट्री डे' यानी द्वितीय विश्व युद्ध में सोवियत जीत का जश्न मनाने के दौरान आया। पुतिन की तरफ से कहा गया कि वे शांति की पहल कर रहे हैं, और यूक्रेन से भी यही अपेक्षा की गई कि वह भी लड़ाई रोक दे। रूस ने साफतौर पर चेतावनी दी कि अगर कोई उल्लंघन करता है, तो इसका 'जवाबी जवाब' मिलेगा। मैदान में, हालांकि, सीजफायर की घोषणा के बावजूद गोलाबारी और संघर्ष की खबरें लगातार आती रहीं। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर समझौते के उल्लंघन के आरोप लगाए।
पुतिन का यह कदम अपने आप में नई बात नहीं है। इससे पहले भी रूस ने ईस्टर के मौके पर 30 घंटे का सीजफायर घोषित किया था, लेकिन तब भी दोनों तरफ से संघर्ष जारी रहा था। ट्रंप प्रशासन की पहल पर ऊर्जा केंद्रों को निशाना न बनाने की एक कोशिश भी नाकाम रही थी। हालात यही बताते हैं कि जमीनी स्तर पर किसी भी सीजफायर का असर लगभग नहीं के बराबर रहा।
वार्ता की पेशकश और अंतरराष्ट्रीय मोर्चा
सीजफायर के ऐलान के साथ ही पुतिन ने तुर्की के इस्तांबुल में 15 मई को यूक्रेन के साथ सीधी बातचीत करने का प्रस्ताव दे डाला। पुतिन का कहना था कि 'मूल कारणों' को बिना शर्त के हल किया जाएगा और तभी मसला सुलझ सकता है। लेकिन यूक्रेन और उसके सहयोगियों ने इस पेशकश को फौरन खारिज कर दिया। यहाँ साफतौर पर यूक्रेन को यह डर था कि रूस सिर्फ वक्त खरीदना चाहता है ताकि अपनी सैन्य तैयारियां मजबूत की जा सकें और कुछ इलाकों पर पकड़ और मजबूत हो जाए। पश्चिमी देश, खासकर अमेरिका की ट्रंप सरकार, रूस पर दबाव बना रही थी कि 12 मई से बिना शर्ते 30 दिन की सीजफायर माने। यूरोपीय देश तो शुरुआत से ही पुतिन की मंशा को शक की नजर से देख रहे हैं। उनके लिए यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता सबसे बड़ी प्राथमिकता है।
अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस तक ने खुला संदेश दिया कि अगर दोनों पक्ष आपस में हल नहीं निकलते तो मध्यस्थता से अमेरिकी हाथ पीछे खींच लिए जाएंगे। ऐसे माहौल में जहां एक तरफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बैठकें, दबाव और बयानबाजी तेज थी, वहीं यूक्रेन-रूस के मैदान में गोलियों की आवाज से हालात जस के तस रहे।
पूरी कहानी को देखें तो यह सीजफायर सिर्फ कूटनीतिक चाल के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि असल में न जमीन पर शांति आई, न ही दोनों पक्ष किसी मध्य रास्ते पर आए। अब आगे की बातचीत के लिए अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की निगाहें टिक गई हैं कि पुतिन और यूक्रेन अगला दांव क्या चलेगा, या यह संघर्ष ऐसे ही खिंचता रहेगा।