प्रधानमंत्री मोदी का एससीओ शिखर सम्मेलन में शामिल ना होना संभावित
कजाखस्तान में अगले महीने आयोजित होने जा रहे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भागीदारी की संभावना ना के बराबर है। उनकी जगह भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में शामिल हो सकते हैं।
सम्मेलन का महत्व और संभावित उपस्थिति
इस सम्मेलन का आयोजन कजाखस्तान के राष्ट्रपति कसीम-जोमार्ट टोकायेव की मेजबानी में होगा। इस आयोजन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ के शामिल होने की संभावना जताई जा रही है।
एससीओ सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री का भाग ना लेना कई सवाल खड़े करता है। प्रधानमंत्री मोदी का यह निर्णय भारत की एससीओ में प्रतिबद्धता को संदेह के घेरे में ला सकता है। 2017 में भारत एससीओ का पूर्ण सदस्य बना था और तबसे इस संगठन में भारत की भागीदारी महत्वपूर्ण रही है।
आने वाले पार्लियामेंट सेशन का प्रभाव
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो 24 जून से 3 जुलाई तक चलेगा आगामी संसदीय सत्र मोदी के एससीओ सम्मेलन में शामिल ना होने का एक मुख्य कारण हो सकता है। ये सत्र भारतीय राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है और प्रधानमंत्री की इसमें भागीदारी आवश्यक मानी जा रही है।
भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन संबंध
भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंध कई दशकों से चल रहे हैं, विशेषकर 2020 के गलवान नाराजगी के बाद से। उस झड़प के बाद से भारत और चीन के संबंधों में भी खटास आ गई है, और प्रधानमंत्री मोदी ने तब से शी जिनपिंग के साथ कोई द्विपक्षीय बैठक नहीं की है।
इसके अतिरिक्त, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भी भारत और रूस के बीच संबंधों में खटास आई है। एससीओ सम्मेलन में रूस, चीन और पाकिस्तान के शीर्ष नेताओं की उपस्थिति भारत के लिए एक रणनीतिक अवसर हो सकता था, लेकिन मोदी का इसमें ना जाना इस अवसर को प्रभावित कर सकता है।
एससीओ के महत्व और भविष्य
एससीओ जिसमें वर्तमान में कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान जैसे देश शामिल हैं, के साथ ही इस वर्ष ईरान और बेलारूस भी इसमें शामिल होने जा रहे हैं। ऐसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की उपस्थिति और उसकी भूमिका अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बड़ी अहमियत रखती है।
व्यापार, सशस्त्र सहयोग, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई आदि महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा के लिए एससीओ महत्वपूर्ण मंच साबित होता है। हालांकि, मोदी का इस सम्मेलन में अनुपस्थित होना उन महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रभाव डाल सकता है जिन पर भारत को घ्यान देना चाहिए।
निष्कर्ष और महत्वपूर्ण सवाल
प्रधानमंत्री मोदी का एससीओ सम्मेलन में ना शामिल होना भारत की विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है। यह निर्णय भारत के एससीओ प्रतिबद्धताओं को कैसे प्रभावित करेगा, यह समय ही बताएगा। संक्रमणकालीन समय में, यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत अन्य एससीओ सदस्य देशों के साथ अपने संबंधों को कैसे प्रबंधित करता है और आगामी सम्मेलन और बैठकें कैसे आयोजित होती हैं।